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छठम दिन छठियार, साठि अराधल रे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

छठियार में आँख आँजने के लिए जच्चा द्वारा ननद को आमंत्रित करने और उसके द्वारा आँख आँजने की विधि संपन्न करने और भाई से पुरस्कार प्राप्त कर बच्चे के फूलने-फलने का आशीर्वाद देने का उल्लेख इस गीत में हुआ है, जिससे उसे उपनयन, विवाह आदि के समय बार-बार आने का सौभाग्य प्राप्त हो।

छठम<ref>छठे</ref> दिन छठियार<ref>जन्म के छठे दिन संपन्न होने वाली विशेष विधि</ref>, साठि अराधल<ref>आराधाना की; निमंत्रित किया</ref> रे।
ललना, साठि अराधि घर आनल, ननदो बुलाबल रे॥1॥
आबहु ननदो गोसाउनि, नगर सोहाउनि<ref>सुहावना</ref> रे।
ललना, बैठहु आए पलँग चढ़ि, भतीजा अगोरै<ref>रखवाली करना, चौकसी करना</ref> रे॥2॥
अगोरि पगोरि<ref>‘अगोरि’ का अनुरणानात्मक प्रयोग</ref> ननदो बैठलि, आँखि नहं आँजै रे।
ललना, लेबै में जड़ी के कँगनमा, तबै हम आँजबै रे॥3॥
घर पिछुअरबा में सोनरबा, तोहिं मोरा हित बसु रे।
ललना, गढ़ि दे जड़ी के कँगनमा, बहिनी परबोधबै रे॥4॥
पहिरि ओहरि बहिनी बैठल, दिय लागलि आसिस रे।
ललना, सोने फूल फूलै होरिलबा, बहुरि हम आयब रे॥5॥

शब्दार्थ
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