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छतरी वाला आदमी / नंद चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
बारिश तेज थी
मेरे पास छतरी नहीं थी
मैं पास वाले आदमी तक गया
जो मुझे सभ्य ओर उदार लगता था
उसकी छतरी पुराने किस्म की थी
ज्यादा बड़ी और रंगीन
मैंने कोशिश की
वह मेरी जरूरत समझे
न बोलूँ तब भी
मैं दूसरे आदमी के पास गया
उसकी छतरी आकर्षक थी
आधुनिक और बटन दबाते ही खुलने वाली
वह मेरी लाचारी पर खुश हुआ
तीसरी छतरी वाला
सन्यासी जैस मुद्रा में खड़ा था
वह आकाश की ओर देखता था
और जल्दी में था
उसने मुझे नहीं देखा
अन्त में
सिर्फ एक छतरी बची थी, फटी और जर्जर
उस भीगते हुए आदमी के पास
मैं ही नहीं गया।