भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छत्तीसगढ़ के माटी / राजेन्द्र पांडेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मोर छत्तीसगढ़ के माटी मय खेलव भवरा बांटी
सरग ले सुंदर ये भइंया मा छूटय मोर परान।
चारों कोनहा म सुख के किरन
न चोरी न भय के बात
ना झगरा न झांसा भइया
दिन होवय के रात
अपन करम के रोजी रोटी म सुख उपजय ये मान
खेत खार मोर चारों धाम
ये नांगर, बइला कांशी
मेहनत परगट महादेव
मय नित दरशन के पियासी
जेकर बल म धरते संगी उगबय मोती धान
तोर कोख के रत्न बेटा
होइन हे आज्ञाकारी
वीर-नारायण सुंदर लाल
सिरी प्यारे लाल हितकारी
थके हारे मनखे मन के होंगय भगवान
भोरमदेव, डोंगरगढ़ पावन
राजिम चम्पारन सुखधाम
मनखे दरशन पांवय संगी
होवयं पूरन काम
महानंदी शिवनाथ हे गंगा-छत्तीसगढ़ हे महान
सरग ले सुंदर ये भुइया म छुटय मोर परान