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छत्तीसगढ़ जागही / ध्रुव कुमार वर्मा
Kavita Kosh से
देख लेबे एक दिन छत्तीसगढ़ जागही।
सब्बो झन पैहा मन इंहा ले भागही॥
हमन हा जनम के
खेती करईया।
धान ला राखके
करगा बिनईया।
करगहा मनखे ला बिन बिन फेकबो।
पोठ-पोठ धान भर ताहले बाचही॥
सोना के खान ए
इहा के धरती।
कोन कइथे रइही ए
परती के परती।
निकल ही फेर इंहा वीर नारायण।
धरती के दुश्मन ला गिन-गिन दागही॥
नेता, बेपारी अऊ
साहेब के यारी।
जान डरेन, सुन डरेन
अब्बड़ संगवारी।
एत्ती ओती थोरको अब करे ले धरही।
लोगन मन गुर सही लस-लस पागही॥
नवा बिहनियां के
नवा कहानी।
अटियाके ऊठत हे
एकर जवानी।
नई चलय थोर को अब ककरो चलाकी
ललकार ही तब ओहा बघवा कस लागही।