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छत भी अपनी आँगन अपना / अविनाश भारती
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					छत भी अपनी आँगन अपना, 
सबसे अच्छा बचपन अपना। 
मालिक रक्खे सबको ज़िंदा, 
सहचर हो या दुश्मन अपना। 
रोटी कपड़ा घर की ख़ातिर, 
क्या-क्या बेचे निर्धन अपना। 
वादे ऐलानों को सत्ता, 
समझे केवल भोजन अपना। 
बंधन जकड़ी राधा ख़ातिर, 
कब तक बैठे मोहन अपना।
	
	