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छत से उतरा साथी इक / निश्तर ख़ानक़ाही
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छत से उतरा साथी इक
मैं और नन्हा पंछी इक
सूरज निकला पाया क्या ?
गुमसुम रात की रानी इक
जीवन शहर दरिंदों का
याद अकेली नारी इक
सारे घर को खोले कौन
सत्तर ताले , चाबी इक
रोगी काया बरखा रुत
तन पर भीगी कमली इक
खुद में तुझको जोडूँ आ
मैं भी एक हूँ ,तू भी इक