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छन्द-गन्ध / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
नीले फूलों से लदी डाल में
जैसे छोटी एक चिड़िया घूमती है
वैसे घूमने दो तुम
मेरे मन को
अपने में, जागते में, सपने में ।
नहीं;
एक पंखुरी नहीं बिखरेगी
तुम्हारे किसी फूल की ।
मगर
ओ नीले फूलों से भरी लता
इतना तो बता
मेरे मन का चहकना
तुझ तक पहुँच रहा है या॒ नहीं
पहुँच रहा है जैसे मुझ तक
तेरा महकना ।
यह कविता कवि की मूल पाण्डुलिपि से लेकर यहाँ टाईप की गई है।