भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छमकि उठलै / चन्द्रमणि

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आंगनमे लागल छै चम्पा चमेली गमकि उठलै
हौले-हौले ई पुरिबा गमकि उठलै
अयलै बसंत कंत घुरियोने अयलै कुहुकि उठलै
भोरे-भोरे कोइलिया कुहुकि उठलै।। भोरे....
साओन सिनेहिया सिनेह जोड़ि गेलै
भादव अन्हरियामे नेह तोड़ि गेलै
आसिनमे आसे गोसाउनिकें पूजल, खनकि उठलै
कर जोरैमे कंगना खनकि उठलै।। भोरे....
कातिक करेजा कठोर भेलै पीके
अगहनमे अन्ने तऽ करबै की जी के
कन-कन बसात मास पूसक सताबै, सिहकि उठलै
तन बेधन बैरिनयिा सिहकि उठलै।। भोरे...
माघ मास आध कोना रहबै गे दइया
फागुनके फगुओमे दूर निरमोहिया
चैतक महीनामे चंचल बदन मन, छमकि उठलै
दुहु पैरक पैजनिया छमकि उठलै।। भोरे....