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छलकती आँख तो सबकी नहीं है / रंजना वर्मा

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छलकती आँख तो सबकी नहीं है
खुशी बाज़ार में मिलती नहीं है

जगी आँखों मे थोड़े ख़्वाब दे दो
ये विरहन रात भर सोई नहीं है

कभी मुफ़लिस के घर भी झाँक देखो
कहीं हमदर्द कोई भी नहीं है

ये माना आपने की बेवफाई
शिकायत भी मगर कोई नहीं है

उलझ कर रह गया आँसू पलक पर
कि अश्कों ने नज़र धोयी नहीं है

बड़ी बातें किया करता जमाना
हक़ीक़त जो कभी होती नहीं है

नहीं जो जिंदगी में प्यार पाता
वही कहता है उल्फ़त ही नहीं है