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छलछलाती इक नदी सी जिंदगी / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

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छलछलाती इक नदी सी जिंदगी।
कट रही पल-पल सदी सी जिंदगी॥

है सतत झोका हवा का बह रहा
जिंदगी की मर्म - गाथा कह रहा।
मन सुखों का एक झोंका झेल कर
दुखों के पर्वत अनेको सह रहा।

हैं बड़े सपने बड़ी अच्छाइयाँ
और इनमें बस बड़ी सी जिंदगी।
छलछलाती एक नदी सी जिंदगी॥

जिंदगी बचपन कहीं मधुबन कहीं
रेत सूखी झील का दरपन कहीं।
प्रेम के प्यासे हृदय की प्यास सी
श्वांस की तड़पन कहीं भटकन कहीं।

एक पग भर विश्व का सर्जन जहाँ
है गमों की षट्पदी सी जिंदगी।
छलछलाती इतनी सी जिंदगी॥

क्यों नजाने रात भर रोती रही
पंखुड़ी पर फुल की सोती रही।
इंद्रधनुषी तितलियाँ भू अंक में
आँसुओं के बीज यों बोती रही।

मिले सौ सौ वर्ष या फिर एक क्षण
है खुदी में बेखुदी सी जिंदगी।
छलछलाती एक नदी सी जिंदगी॥