छलिया युग, दानी दिल / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'
1.
जनम दै वाला जनक कहलावै
आरो बनाय वाला निर्माता
ज्ञान दै वाला गुरू कहलावै छै
आरो दान दै वाला दाता ।
2.
जनम पूज्य छै पुत्रा के
निर्मित निर्माता के
गुरू पूज्य छै शिष्य के
लेवता के दाता ।
3.
मतरकि विज्ञान-युगोॅ में
शिक्षा के विकास के युगोॅ में
निर्मित पूज्य निर्माता के
देखोॅ तोंय मंदिर में जाय केॅ ।
4.
गरीबोॅ केॅ कौनें पूछेॅ
अमीरोॅ के रेलमपेल
अफसर के तेॅ बाते छोड़ोॅ
नेता केरोॅ भी वैसने खेल ।
5.
बिना खैनें भूख नै मिटै
बिना पीनें प्यास नै जाय
बिना देखनें आँख नै भरै
संत आरो शास्त्रा कहै छै भाय ।
6.
कबीरें कहनें छै-पत्थर नै पूजोॅ
ओकरा सें हरि नै मिलथ्हौं
चक्की तेॅ ओकरा सें अच्छा
पीसी-पीसी खाय छै सूचा ।
7.
जे जहाँ छै, वहीं मिलै
इन्हें-हुन्नें बेकार खोजै
हृदय में ही ‘ऊ’ छौं, वहीं ढूंढ़ोॅ
गुरू ज्ञान सें वहीं पैवोॅ ।