भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छलिया है वो( हाइकु) /रमा द्विवेदी
Kavita Kosh से
१-बर्फीला मन
ठिठुरते सपने
ऊष्मा रहित |
२- देख -समझ
सुन्दरता में न जा
छलिया है वो |
३-स्नेह -तलाश
सपने हुए ख़ाक
फूलों में आग |
४-उपाय कर
तमस भरा मन
उज्ज्वल कर |