भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छल / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लोग कहते हैं
तू जिन्हें दाँत देता है
उन्हें चने नहीं देता
और जिन्हें चने देता है -
उन्हें दाँत !

पर मुझे तो तूने
दोनों ही दिए, दाँत और चने ।
दीगर है यह बात
कि इन दाँतों से
ये चने चबाए नहीं जाते ।

अनुवाद : मोहन आलोक