भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छळ / सांवर दइया
Kavita Kosh से
लोग कैवै :
तूं जठै दांत देवै
बठै चिणा कोनी देवै
अर जठै चिणा देवै
बठै दांत
पण म्हनै तो तैं
दांत अर चिणा दोनूं ई दिया
अबै
आ बात न्यारी है
कै आं दांतां सूं
ऐ चिणा चाबीजै कोनी !