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छवो घाट में जाने के लिए / बिहुला कथा / अंगिका लोकगाथा

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बिहुला का मन उच्चाट होना

होरे उद्वेग देले हे माता मैना बिषहरि रे।
होरे बोले तो लगली हे माता बिहुला से जबाब हे॥
होरे तोहे मातु जोहोगे बिहुला छवो घाटी पोखर रे।
होरे छवो घाट बसैगे बिहुला घर के आयबे रे॥
होरे दूबो द्रब दियेगे बिहुला घर के आयबे रे।
होरे मोरा कुल आवेएगे बिहुला गरिया दिलाएवे रे॥
होरे कौन कहा छवगे मासा कौन पति आवेगे।
होरे परकेरी धियागे माता परें कैसे लैजायतेगे॥
होरे छवो घाटी पोखरगे बिहुला जौकबड़राड़गे।
होरे जाक राड़ आवे बिहुला मांस धरि खायतोगे॥
होरे कान नहीं छउगे माता कौन पति आवेगे।
होरे नहीं जै मनलेगे बिहुला माता का कह लगे॥
होरे सखी दस आवेगे बिहुला लेले संग लगाय रे।
होरे तेल खरी आवेगे बिहुला लेले संग लगाय रे॥
होरे चलह आवे हे सखी सब छवो घाटी नहावे हे।
होरे हाली दिवो आवे हे सखी घुरी घर आयब हे॥
होरे छवो घाटी कर रे दैवा बिहुला सुन्दरी रे।