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छाँह छलकि के गिरल डाल से / केदारनाथ मिश्र 'प्रभात'
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छाँह छलकि के गिरल डाल से
पात-पात तूफान बन्द बा
बादल झुकल कि झील-छंद बा
स्वर, सुर, अलंकार
सब के सब सुलग उठी
तू छुअ ज्वाल से
छाँह छलकि के गिरल डाल से
फूल बयार जवा के लोढ़े
सँस जेकाहें के पट ओढ़े
राति काल्हु के
साँझि आजु के
देखत बानी
उषा काल से
छाँह छलकि के गिरल डाल से