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छाता / सुखराम चौबे 'गुणाकर'
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यह छाता है सुखदाई,
मैं इसे न दूँगा भाई।
जब घर से बाहर जाता,
या बाहर से घर आता,
यह संग में आता-जाता,
रखता है सदा मिताई।
जब पानी बरसा करता,
मग चलने में जी डरता,
तब मेरी रक्षा करता,
यों होता सदा सहाई।
जब धूप कड़ी होती है,
तब तपन बड़ी होती है,
भुन सड़क पड़ी होती है,
दे छाया, करे भलाई।
यह समय पड़े पर सच्चा,
डंडे का पूरा बच्चा,
सिरहाना भी है अच्छा,
मैं क्या-क्या करूँ बड़ाई!