भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छाते / विनोद स्वामी
Kavita Kosh से
वैसे तो
अपनी मर्ज़ी के
मालिक हैं ये
पर हमारी नज़रों में
आकाश में उड़ते
ये बादल
छाते हैं हमारे ।