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छाया! मैं तुममें किस वस्तु का अभिलाषी हूँ / अज्ञेय

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छाया! मैं तुम में किस वस्तु का अभिलाषी हूँ?
मुक्त कुन्तलों की एक लट, ग्रीवा की एक बंकिम मुद्रा और एक बेधक मुस्कान, और बस?
छाया! तुम्हारी नित्यता, तुम्हारी चिरन्तन सत्यता क्या है?
आँखों की एक दमक - आँखें अर्थपूर्ण और रह:शील, अतल और छलकती हुईं; किन्तु फिर भी केवल आँखें- और बस?
छाया! मैं क्या पा चुका और क्या खोज रहा हूँ?
मैं नहीं जानता, मैं केवल यह जानता हूँ, कि मेरे पास सब कुछ है और कुछ नहीं; कि तुम मेरे अस्तित्व की सार हो किन्तु स्वयं नहीं हो!

मुलतान जेल, 10 दिसम्बर, 1933