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छायाविहीन / रामकुमार कृषक
Kavita Kosh से
बुरा तो नहीं है
अपनी शाखाओं, फूल, फल और
पत्तियों पर गर्व करना
मस्त रहना तन्नाते हुए उन्हीं में
लेकिन वह जर्जर देह
रीत गई जो खाद की बोरी की तरह
और बह रही है आज भी
तुम्हारे समूचे जिस्म में
कौन-सी छाया तलाश करे ?
रचनाकाल : 1971-1981