भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छाया कितनी कीमती / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
Kavita Kosh से
छाया कितनी कीमती, बस उसको ही ज्ञान।
जिसने देखें हों कभी, धूप भरे दिनमान॥
धूप भरे दिनमान, फिरा हो धूल छानता।
दुख सहकर ही व्यक्ति, सुखों का मूल्य जानता।
'ठकुरेला' कविराय, बटोही ने समझाया।
देती बड़ा सुकून , थके हारे को छाया॥