भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छाया गीत / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर
Kavita Kosh से
शहर भर की सारी छायाएँ
झील में आकर सो गईं
अब रात की तरह
ये झील नीम अंधेरी
और आसमान की तरह शांत
किनारे पर कहीं
एक बड़ा–सा मेंढक टर्राता है
जैसे रेडियो में खरखराहट
तारों पर से
बहुत धीमे गुज़रती है एक नाव
उसकी तलहटी में बजता पानी
‘छाया गीत’ की तरह
सुनाई देता है