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छावते कुटीर कहूँ रम्य जमुना कै तीर / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

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छावते कुटीर कहूँ रम्य यमुना के तीर
गौंन रौन -रेती सौं कदापि करते नहीं ।
कहैं रत्नाकर बिहाय प्रेम गाथा गूढ
स्रौन रसना में रस और भरते नहीं ।
गोपी ग्वाल बालनि के उमड़त आँसू देखि
लेखि प्रलयागम हूँ नैकु डरते नहीं ।
होतौ चित चाव जो न रावरे चितावन क
तज ब्रज-गाँव इतै पाँव धरते नहीं ।