छा गए बादल / महेन्द्र भटनागर
तुम्हारी मद भरी मुसकान लख कर आ गये बादल !
तुम्हारे नैन प्यासे देखकर, ये छा गये बादल !
नवेली ! पायलों से बज रही झंकार है झन-झन,
सदा यह झूमता प्रतिपल सुघड़ सुन्दर सुकोमल तन,
असह है यह तुम्हारे रूप का अब और आकर्षण,
नयन बंदी हुए जिसको निमिष भर देखकर केवल !
चमकता शुभ्र गोरे-लाल फैले भाल पर झूमर,
तुम्हारे केश घुँघराले हवा में उड़ रहे फर-फर,
झुके जाते स्वयं के भार से प्रति अंग नव-सुन्दर,
फिसलता जा रहा है वक्ष पर से फूल-सा आँचल !
तुम्हारा गान सुन संसार सब बेहोश हो जाता,
बड़े सुख की नयी दुनिया बसा निश्चिन्त सो जाता,
तुम्हारी रागिनी में डूब मन-जलयान खो जाता,
बहाती हो अजानी स्नेह की धारा सरल छल-छल !
अमिट है याद से मेरी तुम्हारा वह मिलन-पनघट,
विकल होकर सुमुखि ! मैंने कहा जब, ‘हो बड़ी नटखट !
’
उसी पल खुल गया था यह तुम्हारी लाज का घूँघट,
बड़े मनहर व मादक थे तुम्हारे बोल वे निश्छल !