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छिटगा-1 / शान्ति प्रकाश 'जिज्ञासु'
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1.
घासकु फंचू मुंडमा देखी
मै तैं पहाडै़ याद एैगी
इख भी घास मुंडमा ल्यांण छौ
त मेरा पहाड़म क्या कमी रैगी ।
2.
खौळ्ये ग्यों मी बाठा देखी
ईं बग्वाळ मा भी नि ऐ तू
किराये कूड़ी सजाणू ह्वैली
अपड़ी कूड़ी भूलगे तू ।
3.
छुयूंन वूंकी दुख आधा ह्वैगेनी
जौंन आंसू फूंजी लोग गौळा लगैनी
पीठी का भारा मा जांन हाथ बटैनी
वु मनखी कुजणी कख चल गेनी।
4.
उन तू बोन्नु भलु नि लगदू
पर ’तू’ मा अपणैसे खुशबु आन्दी
आप से त आप बड़ा ह्वै जांदन
आप अर मेरा बीच दूरी बढ़ जान्दी।
5.
पैसन् मन्खि तैं निठुर बणाई
खुट्टौं की बिवैं याद नि आई
अब हिटणूं च कालीनू मा
खौरी का दिनू तैं भूल ग्याई।