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छिटगा-4 / शान्ति प्रकाश 'जिज्ञासु'

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1.
आज मैं परै ठोकर लगी ब्वै की जिकुड़ी टुट्गी
मेरु खून बौगी बी नि, वीं की गंगा जमुना बौग गी।

2.
कागा, सिंटुला, घिंडुड़ा, घुघता सब हरचणा छन
जब बिटी लोग चौक मा का डाळा कटणा छन।

3.
ढुंग्गू घौंण से ही फुटू इन नि ह्वै सकदू
पांणी मा बौगी भी ढुंग्गू चूर ह्वै सकदू।

4.
लोगू से पता चली मि ह्वै ग्यों बुड्या
मान मेरी मुंण्डळी मलासी बोली मेरु बच्चा।

5.
जै उबणा मा सिवाळी अफु तींन्दा मा से
वैन् मारदी दां ब्वै की मुकजात्रा भी नि कै ।

6.
जगीं मुछळी पिछनै ही आन्दी ब्वै बोलगै छै
मोरदी दां वैकी बी ठीक उन्नी गत्ता ह्वै।