भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छितिज केॅ निहारोॅ / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
Kavita Kosh से
खुललोॅ झड़ोखा सें छितिज केॅ निहारोॅ!
बान्हलोॅ यै मुट्ठी केॅ छाती पर मत बान्होॅ,
दोसरा केॅ अंक भरोॅ, बाँह तेॅ पसारोॅ?
कमरा के गुमसुमपन, ऐङना के घेरा;
अदमरूवोॅ आँखी में चिन्ता के डेरा
जिनगी के साथी छै भूख-प्यास-लाचारी;
कुछ देरी यै सब केॅ दोसरा लेॅ बारोॅ!
फूलोॅ के बगिया में कुहरा जे छैलोॅ छै,
सूर्जोॅ के किरणोॅ सें ऊ सब घबरैलोॅ छै।
हँसनी छितरैतै सब फूल-कली-डारी पर
किरणोॅ के ध्यान धरोॅ, धुंध केॅ बिसारोॅ!
खुललोॅ झड़ोखा सें छितिज केॅ निहारोॅ!