भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छिन्दवाड़ा-4 / अनिल करमेले
Kavita Kosh से
जहाँ कभी घास बाज़ार था और
टोकनी में फल बैठती थीं फलवालियाँ
जिला अस्पताल, बैल बाजार, नागपुर नाका, चक्कर रोड,
फव्वारा चौक, सी०एम० काम्प्लेक्स
जहाँ मजे से सायकल लेकर टहला जा सकता था
अब सड़क दर सड़क पटी पड़ी हैं दूकानों से
और बुछे चेहरों से ग्राहकों का इंतज़ार करते दूकानदार
शहर के बुनियादी मुहल्ले बरारीपुरा, दीवानजीपुरा और छोटीबाजार
घिसट रहे हैं हाशिए पर
नवधनिक और पास के गाँवों से आए नए सामंत
घूमते हैं शहर में छाती फुलाए
उजाड़ में फैलते इस शहर को
90 के बाद जैसे लकवा मार गया
जिसकी भूमिका बन गई थी 90 के दशक में