छिपकली और बच्ची/ अनूप सेठी
सबसे पहले बच्ची ने ही देखा वह दृश्य
एक कौआ एक छिपकली को चींथ रहा था
तभी दूसरी छिपकली पेड़ से सरपट उतरती हुई आई
छलांग लगाकर डराने के इरादे से
कौआ डटा रहा यथावत्
अब सलामत छिपकली थी कौए के एकदम सामने
घायल छिपकली थी जकड़ी हुई कौए के पंजों में
अत्याचार के खिलाफ गुस्से और दर्द से भरी सलामत छिपकली
कौए पर कोई निर्णायक चोट करती
उससे पहले ही कौए ने पंखों का सहारा ले लिया
अभ्यस्त रही होगी सलामत छिपकली
फलाँग कर जा चढ़ी वापस पेड़ के तने पर
बहुत ऊपर पर वह जा नहीं सकी
हमें भी पेड़ पर उसके बाद कुछ दिखा नहीं पत्तों में
कुतूहल बना रहा अलबत्ता
सलामत छिपकली की गर्दन की तरह उचका हुआ
छिपकली का मन लेकिन फट पड़ रहा होगा
इस दृश्य में सक्रिय होने
या पता नहीं किस बात से प्रेरित होकर
छोटी छोटी गिट्टियां हमने ज़रूर मारीं
निशाने पर वे लगी नहीं
बच्ची ने हमारे उदासीन हो जाने के बाद भी
दो बार पत्थर मारे भरपूर ज़ोर लगाकर
ज्ञान विज्ञान का बगूला उठा उसके बाद हमारे अंदर
भन्नाए हुए शहर में पेड़ के नीचे
एक छिपकली में दूसरी को बचाने की कैसे सूझी
दिमाग में आया तभी हमारे यह मुक्तिदाता ख्याल
वह ज़रूर मां रही होगी उसकी
और इस हत्याकांड से हम बरी हो गए
दो दिन बाद एक और दृश्य था मितली लाने वाला
बिल्ली का बच्चा जो बमुश्किल दो माह का होगा
हमारे बच्चों ने पहले दिन से उसे देखा था
अचानक मरा पाया गया उसी जगह
बच्ची बेहद विचलित थी
कई बार हमने उसे खिड़की से परे हटाया
शाम को अचानक बोली जैसे कोई आह भरी हो
उसकी मां भी नहीं आई इस तरफ
देह में झन्नाहट सी हुई एक पल को
दूसरे ही पल दब भी गई
सुबह जब बच्ची स्कूल को चली
मां से चिपट कर रो पड़ी अचानक
यह आदतन डुसकने और बिछोह के रुदन से कुछ अलग तरह का
और मर्मान्तक कलपना था
राजनैतिक घटना यह है नहीं
दीवानी मुकद्दमा भी बनता नहीं
आर्थिक सामाजिक कोण भी कोई दिखता नहीं
समाज का कायदा कानून जीव जंतुओं पर लागू होता नहीं
दीन ईमानों के अपने अलहदा धोती लंगोट हैं
कुदरती कानून ही शायद फैसले करता होगा
उसकी मुक्कमिल पोथी किसी लाइब्रेरी में मिलती नहीं
फिर क्या किया जाए
हो सकता है बेमतलब हो यह सब
पर मन मानता नहीं है।
(1997)