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छिलके के भीतर / मुइसेर येनिया
Kavita Kosh से
मेरे दर्द के भीतर दर्द है
जैसे छिलके के भीतर कोई फल
मेरी देह जैसे पीड़ा से बेचैन कपड़े
जिन्हें मैं बदल भी नहीं सकती
उन्होंने कहा अभी... और मैं आ गई
उन्होंने कहा यहाँ...और मैं पहुँच गई
मैंने अपने दिल के खिलौने तोड़ दिए
जैसे मैं एक तस्वीर के भीतर यात्रा कर रही हूँ
तुम जिसकी तरफ़ देख रहे हो
— तुम या कोई और —
ऊपर तक लदे हुए हैं मेरे हाथ
जाने क्यूँ लाद कर लाई इतना वजन यहाँ
लो देखो
इस मुल्क को जहाँ लोगों के दिल
उनके सीनों से बाहर निकाल दिए गए थे
आँसू निकल पड़े
अतीत बह गया था ।