छीना-झपटी / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'
सुखलै जल मछली घबरावै
बगुला आपनोॅ दाव लगावैं
ऊपरोॅ में चिल्हा मड़रावै
टिटही झपटी के लै जावै।
मछली देखी बगुला चिंतन
कादो भेलै घिकवा-मत्थन
जहाँ-तहाँ मछली ऊपलावै
कोय पैरोॅ कोय जाल लगावै।
पकड़ै कोय बुआरी कतली
पकड़ै रेहु टेंगरा मछली
गैची कादो में घुसीयाबै
पोठिया रे सगरो उपलावै
कोय लाठी सें मारेॅ झपटी
कोइये पकड़े दौड़ी लपटी
कोय सुंगठी पर भोग लगाव
केॅकड़ा पकड़ी केॅ घर लावै।
चिल्हा केॅ भिललै जौं मौका
आँखी मटके देलकै धोखा
एक झपट्टा में झपटी केॅ
गरे पीठिया सुगटी खावै
चिल्हा उपर कौवे-कौवा
लोल चलाबै जैसे डौवा
छीना-झपटी करतें-करतेॅ
मुँह से मछली गिरि-गिरि जावैं॥
गिरतें मछली दोसरें झपटै
तेॅसरोॅ ओकरा पीछू लपकै
उट्ठा-पट्टक गरमा-गरमी
ई आफत केँ के सुलझावै?
जब लें मछली छै पोखर में
खे-खेलाड़ी छै ठोकर में
मछली छेकै सोना रानी
रंग चढ़ावै-रंग चुवाबै।
ई सोना पर छीना-झपटी
‘रानीपुरी’ कहै छै कपटी
‘सोना’ सोना केॅ भुतलावै
दै केॅ सुहागा रंग लगावै॥