भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छीन कर वो लज़्ज़्त-ए-सोतो सदा ले जाएगा / शीन काफ़ निज़ाम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छीन कर वो लज़्ज़त-ए-सोतो-सदा<ref>आवाज़ का आनंद</ref> ले जाएगा
हाथ शल<ref>शिथिल</ref> कर जाएगा हरफ़-ए-दुआ ले जाएगा
 
बीच का बढ़ता हुआ हर फ़ासला ले जाएगा
एक तूफ़ाँ आएगा सब कुछ बहा ले जाएगा

देखना बढ़ता हुआ ये ख़्वाहिशों का सिलसिला
मौज-ए-खूं<ref>रक्त की लहर</ref> दिखलाएगा रंग-ए-हिना<ref>मेहंदी का रंग</ref> ले जाएगा
 
बेमुक़द्दर छोड़ जाएगा सभी परेशानियाँ
रोशनी आँखों की सीने की ज़िया ले जाएगा

घर से जाते वक़्त वो अब के बुजुर्गों की दुआ
ले तो जाएगा मगर डरता हुआ ले जाएगा

लम्स<ref>स्पर्श</ref> में मिल जाएगा आवाज़ का असरार<ref>रहस्य</ref> भी
पानियों के पैकरों<ref>बिम्बों</ref> को भी उठा ले जाएगा

इक परिंदों रात की चौखट पे आएगा निज़ाम
देखना है देगा क्या और हमसे क्या ले जाएगा

शब्दार्थ
<references/>