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छुंछा के बा के पुछवइया / जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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छुंछा के बा, के पुछवइया
तातल गरमी घामे उबलत
हर के मुठिया धइले डोलत
जरत घाम में चाम झुराइल
का पछुवा आ का पुरवइया। छुंछा के बा, के पुछवइया।

लगल बुढ़ौती, गइल जवानी
जिनिगी बीतल चढ़ल न पानी
छोटन के तन कसहूँ ढकली
बोलत बोलत बप्पा मइया। छुंछा के बा, के पुछवइया।
कब्बों जे कुछ भयल खेत में
कहाँ मयस्सर उहो पेट में
सहुआ ले भागल उठवा के
घर में बाँचल धान के पइया। छुंछा के बा, के पुछवइया।

कइसे मनवा होई शीतल
बून बून के तरसत बीतल
घर के थाती कुल्ही ओराइल
अंगना से भागल गौरैया। छुंछा के बा, के पुछवइया।

भूखे भजन न होय गोपाला
बकबक से ना भूख मेटाला
कहिया ले तूँ ढाढ़स देबs
कहिया ले कुछ करबा भइया। छुंछा के बा, के पुछवइया।