भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छुटग्या अमृतसर का बास / मेहर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वार्ता- राजा अम्ब वहां से चल पड़ते हैं और एक शहर में पहुंच जाते हैं। उस शहर के राजा धर्म सिंह की वसीयत थी कि जब भी उसकी मृत्यु हो और इस शहर से बाहर का जो व्यक्ति उसकी अर्थी के सामने आए उसे ही राजा बना दिया जाए। विधि का विधान जिस समय राजा अम्ब शहर की ओर आ रहे थे उसी समय राजा धर्म सिंह की अर्थी लाई जा रही थी। राजा अम्ब को वहां का राजा बना दिया गया। कुछ समय बाद सरवर और नीर भी उसी राजा की सेना में सिपाही भर्ती हो गये। व्यापार करता हुआ पन्नालाल सौदागर भी अपने जहाज की सुरक्षा के लिए वे सिपाही मांगता है, संयोगवश सौदागर के जहाज पर सरवर और नीर की ड्यूटी लग जाती है। रात को नीर कहता है कि कोई बात सुनाओ ताकि रात कट जाए। सरवर आप बीती कहानी उसे सुनाता है और क्या कहता है-

अम्ब पिता और अम्बली माता जिनकी करते आस
छुटग्या अमृतसर का बास।टेक

दरबारां म्हं साधु आया भिक्षा का सवाल किया
आप राजा बण गये पिता को कंगाल किया
लते कपड़े तरवा लिए ऐसा बुरा हाल किया
राज घरां के रहण आले भिक्षा के हकदार करे
माता पिता दोनूं भाई धक्के दे कै बाहर करे
पहलां बचन भरा लिए हम सब तरियां लाचार करे
धोखे तैं म्हारा राज ले लिया तेरा जाईयो साधू नाश।

फेर उज्जैन शहर मैं आए बड़ा भारी अन्देश हुया
एक भठियारी कै नौकर लागे ऐसा बुरा भेष हुया
पिता जी पात्यां नै गये पाच्छे तै एक केश हुया
भठियारी नै जुल्म करे सौदागर तै कर ली बात
बन्दरगाह पै रोटी ले कै माता जी गई थी साथ
जहाज कै म्हां माता चढ़गी, भठियारी हिलागी हाथ
वो जहाज चालता कर दिया मां रही सौदागर के पास।

आण कै पिता जी बोले कहां गई बच्चों की मां
छोह मैं आ भठियारी बोली लिकड़ मेरी सराय तै जा
चम्बल उपर पहुंचे भाई अधम बिचालै डुबी ना
एक किनारै मैं रैहग्या और दूसरे किनारै नीर
न्यारे न्यारे पाड़ दिये फूट गई म्हारी तकदीर
बच्चेपन मैं बड़े दुःख देखे रोवण लागे दोनूं बीर
फेर दरिया कै म्हां झाल लाग कै बहगी पिता की लाश।

फेर धोबी धोबण आए पुचकारे और बूझी बात
धोबी बोल्या मैं पिता हूं धोबण है तुम्हारी मात
रोटी लता ईश्वर देगा चालो बेटा म्हारी साथ
उस भयंकर जंगल मैं तै धोबी धोबण ल्याए थे
अपणें केसी मेर करकै पढ़ाऐ लिखाए थे
दोनूं फेर जवान होगे हम टुकड़े सर करवाऐ थे
इब उनका गुण ना भूलां रहांगे जिन्दगी भरके दास।

जितणे हैं इन्सान भाई सबका भाग न्यारा न्यारा
बच्चेपन मैं बड़े दुख देखे हमने बरस बिता दिये बारा
पीली पाटी दिन लिकड़ग्या जब किस्सा खत्म हुआ सारा
छोह मैं आ पिता जी बोले जुबां को चलाओ मत
मैं थारी सुणना नहीं चाहता सी बणाओ मत
लाठी लैके मारण भाज्या जाट होकै गाओ मत
कहै मेहर सिंह मेरे पिता कै सै झूठा विश्वास।