भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छुटटी / रेखा चमोली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुबह से देख रहा हू उसे
बिना किसी हडबडी के
जुट गयी है रोजमर्रा के कामों में
मैं तो तभी समझ गया था
जब सुबह चाय देते समय
जल्दी-जल्दी कंधा हिलाने की जगह
उसने
बडे प्यार से कंबल हटाया था
बच्चों को भी सुनने को मिला
एक प्यारा गीत
नाश्ता भी था
सबकी पसंद का
नौ बजते-बजते नहीं सुनाई दी
उसकी स्कूटी की आवाज

देख रहा हू
उसने ढूढॅ निकाले हैं
घर भर के गन्दे कपडे धोने को
बिस्तरे सुखाने डाले हैं छत पर
दालों ,मसालों को धूप दिखाने बाहर रखा है

जानता हू
आज शाम
घर लौटने पर
घर दिखेगा ज्यादा साफ ,सजा-संवरा
बिस्तर नर्म-गर्म धुली चादर के साथ
बच्चे नहाए हुए
परदे बदले हुए
चाय के साथ मिलेगा कुछ खास खाने को
बस नहीं बदली होगी तो
उसके मुस्कुराते चेहरे पर
छिपी थकान
जिसने उसे अपना स्थाई साथी बना लिया है

जानता हू
सोने से पहले
बेहद धीमी आवाज में कहेगी वह
अपनी पीठ पर
मूव लगाने को
आज वह छुटटी पर जो थी।