छुट्टी के दिन पूरे होग्ये / मेहर सिंह
छुट्टी के दिन पूरे होग्ये न्यू सोचण लाग्या मन म्हं
बांध बिस्तरा चाल पड्या कुछ बाकी रही ना तन म्हं
छाती कै ला कै माता रोई जिसनै पाळया पोष्या जाम्यां था
बुआ बाहण पुचकारण लागी भाई भी रोया राम्भा था
दरिया केसी झाल उठती मनैं कालजा थांब्या था
छोटे भाई नै घी पीपी म्हं गूंद खाण का बांध्या था
न्यूं बोले दिए छोड़ नौकरी के दब कै मरैगा धन म्हं
पिता जी खड़े दरवाजे म्हं उनकी कान्ही चाल्या था
कोळै लागी मेरी बहू रोवै थी सांस सबर का घाल्या था
आंख्यां के म्हं नीर देख कै मेरा काळजा हाल्या था
न्यूं बोली पिया मेरे नाम का किसतैं दिया हवाला था
गश खाकै नै पड़ी घर आळी होश रही ना तन म्हं
हाथ फेर कै पुचकार दई कुछ ना चाल्या जोर मेरा
छ: महीने म्हं आल्यूंगा जै ना आया तो चोर तेरा
रस्ते म्हं सुसराड़ पड़ै थी उड़ै बी लाग्या दौर मेरा
जीजा आया जीजा आया साळा करता आया शोर मेरा
सासू नैं पुचकार दिया मेरै सीळक हुई बदन म्हं
उड़ै रोटी तक अभी खाई कोन्या करी चलण की त्यारी
जीजा जी क्सद आओगे न्यू बूझै साळी प्यारी
म्हारे आवण का बेरा ना तुम आस छोड़ दियो म्हारी
इतने ए दिन की जोड़ी थी या थारे तैं रिश्तेदारी
मेरी लियो आखरी राम राम थारे कर चाल्या दर्शन मैं
टेशन ऊपर छोड़ण खातर साळा संग म्हं आया था
बाबू जी तैं करी नमस्ते वारंट चेंज कराया था
गाड़ी के म्हं बैठग्या मनै पाला गस का खाया था
सिंगापुर म्हं जा पहोंच्या डांगर ज्यूं डकराया था
कर बदली मैं भेज दिया उस केहरी बबरी बण म्हं
यूनिट म्हं दई हाजरी मनैं पक्का देणा पहरा हो
घर की याद बहू की चिंटा यो भी दुख गहरा हो
फौज के म्हां वो जाइयो जो बिन ब्याहा रह रहया हो
फौजियों तैं बूझ लियो जो मेहर सिंह गलत कह रहया हो
कोए बहुआं आळा सुणता हो तो मत दियो पैर बिघन म्हं
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