भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छुट्टी के दिन / कृष्णकांत तैलंग
Kavita Kosh से
ताक धिना-धिन, ताक धिना-धिन!
मोटे बस्ते से कुट्टी है,
छुट्टी है, भाई छुट्टी है,
शाला के दिन कटते गिन-गिन!
खेलें-कूदें, मौज मनाएँ,
नाचें-गाएँ, धूम मचाएँ,
बढ़िया लगते छुट्टी के दिन!
दूर-दूर की सैर करेंगे,
मन में नई उमंग भरेंगे,
मज़ा रहेगा हर पल, हर दिन!
अच्छी-अच्छी नई पुरानी,
खूब पढ़ेंगे कथा-कहानी
सूना लगता नानी के बिन!