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छुपम छुपाई / बोधिसत्व
Kavita Kosh से
तुम्हारी पीठ की ओट में छिप जाऊँ
बहुत छाया है यहाँ
थक गया हूँ
जागते-जागते
जहाँ तहाँ भागते-भागते
तुम कहो तो तुम्हारी पीठ की ओट में
छिप जाऊँ
तुम सुनती हो पर कोई उत्तर नहीं देती
यह अबोला कब तक चलेगा
कहो तो
तुम्हारे उलझे बालों में अँगुली की कंघी घुमाऊँ
तुम्हें लोरी सुनाऊँ
तुम्हारी अँगुलियाँ पटकाऊँ
भर्राई आवाज में कुछ गाऊँ
तुम्हें अदरक की चाय पिलाऊँ
फिर तुम्हारी पीठ की ओट में छिप जाऊँ
तुम बोलती नहीं कुछ भी
ठीक है मैं जाता हूँ
दूर तक जाना है
और लौट कर फिर आना है
तुम्हारी ओट में छिपने के लिए।