भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छुपा के पीर गया और मुस्कुरा भी गया / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
छुपा के पीर गया और मुस्कुरा भी गया।
अधूरा ख़्वाब मिलन का हमें दिखा भी गया॥
निगाह हमसे मिलाई न कभी उल्फ़त में
वो राज़ दिल के छुपा भी गया बता भी गया॥
गया वह छोड़ अकेला ही तीरगी में हमें
मगर चिराग मुहब्बत का इक जला भी गया॥
चला गया मुहाल कर के ज़िन्दगी वह मेरी
थी चाल तेज मगर फिर वह लड़खड़ा भी गया॥
हज़ार कसमें है खायी कि भूल जायें मगर
सितारे आँखों में उल्फ़त के झिलमिला भी गया॥