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छुप जाती हैं आईना दिखाकर तेरी यादें / नासिर काज़मी

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छुप जाती हैं आईना दिखाकर तेरी यादें
सोने नहीं देतीं मुझे शब भर तेरी यादें

तू जैसे मेरे पास है और महवे-सुख़न है
महफ़िल-सी जमा देती हैं अक्सर तेरी यादें

मैं क्यों न फिरूँ तपती दुपहरो में हिरासां
फिरती हैं तसव्वुर में खुले सर तेरी यादें

जब तेज़ हवा चलती है बस्ती में सरे-शाम
बरसाती है अतराफ़ से पत्थर तेरी यादें।