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छूकर हवा तुझे / जितेन्द्र सोनी
Kavita Kosh से
छूकर हवा तुझे मुझ तक जो पहुँचे
दिल तक यूँ कि लहू जो पहुँचे
जिंदगी शब की रात बन जायेगी
तेरी मुस्कुराहटों का चाँद मुझ तक जो पहुँचे
जहां की रौनक फ़ना हो जाए
तेरी आँख का आँसू गालों तक जो पहुँचे
प्यार को जाने ये दुनिया कुछ यूँ
चोट तेरे हो और दर्द मुझ तक जो पहुँचे
जीना चाहता हूँ तब तलक
तेरी धड़कन का साज़ मेरे कानों तक जो पहुँचे