छूटती चीज़ों के बीच / तुषार धवल
छोड़ दिया तुमने भी
जैसे कि
सब चीज़ें छूट रही हैं
नहीं थी पहले भी
अब तो और भी नहीं है
इस लौटती धार में
रेत के कुछ ढूह
ढह कर भी ठहर गए हैं
पैरों के बीच फँसा
एक घोंघा
घास का एक तिनका
और
उन सबको टटोलता मन
अब भी वहीं कहीं भटक रहा है
बाज़ार की थिरकती रोशनी के
बीच
एक पता पूछता
छोड़ दिया तुमने
और
अब समझने लगा हूँ
अन्त भी भ्रम ही है
एक आख़िरी अंगड़ाई का इन्तज़ार
जो फिर नहीं आती
और अब नही आएगा वो सब
जो तुमसे उगा था
सोचता हूँ
ई-मेल के खोखले शब्दों मे कौन सा रस भरूँ
किस लिबास मे पेश करूँ
वह सब
जो अब नहीं है --
जो था ही नहीं
और जिसके पीछे का
एक खुला आकाश और भी सुन्दर हो चला है
देर दोपहर तक
थकी उबासी के बीच
कई बार दरवाज़े पर
वही परछाईं मुस्कुराती दीखी
वही आँखें बोलती रहीं
मैं देखता रहा
सुनता रहा समय के शब्द
जब
तुम नहीं हो
तुम्हें हर कहीं सुन सकता हूँ
उस खुलते आकाश में
देखता हूँ
तुम पतंग सी दीखती हो
चटकीले पीले रंग की
और पीछे
हल्का नीला आकाश
खिलखिला रहा है।