भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छूट गया है / मंगलेश डबराल
Kavita Kosh से
भारी मन से चले गए हम
तजकर पुरखों का घरबार
पीछे मिट्टी धसक रही है
गिरती पत्थर की बौछार
थोड़ा मुड़कर देखो भाई
कैसे बन्द हो रहे द्वार
उनके भीतर छूट गया है
एक एक कोठार ।
(1992)
लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी में पढ़िए
Manglesh Dabral
SONG OF THE DISLOCATED
With a heavy heart we left
tore away from the ancestral home
mud slips behind us now
stones fall in a hail
look back a bit brother
how the doors shut themselves
behind each one of them
a small granary utterly forlorn.
1992
(Translated from Hindi by Asad Zaidi)