छूने की इच्छा है मेरी / दीनानाथ सुमित्र
छूने की इच्छा है मेरी
नील गगन थोड़ा झुक जाओ
नूतन तड़प जगी इच्छा में
नई तरह से मत तड़पाओ
मेरी धरा बड़ी पथरीली
तरह-तरह के शूल विषैले
माखन-सी कोमल काया है
मिलते रहते फूल विषैले
कैसे इनके साथ रहूँ मैं
लेकर घटा तुम्हीं बतलाओ
छूने की इच्छा है मेरी
नील गगन थोड़ा झुक जाओ
नूतन तड़प जगी इच्छा में
नई तरह से मत तड़पाओ
सदियों का दुख एक निमिष में
तुम्हीं बताओ कैसे सह लूँ
लाक्षागृह जलता है प्रतिपल
एक निमिष भी कैसे रह लूँ
तृषित कंठ है कई युगों से
अमृत- कलश पास ले आओ
छूने की इच्छा है मेरी
नील गगन थोड़ा झुक जाओ
नूतन तड़प जगी इच्छा में
नई तरह से मत तड़पाओ
और विलंब करोगे अंबर
अंतिम साँस माँगनी होगी
आिखर जग में और कौन है
काल सदृश वरदानी योगी
आत्मा घायल हुई जा रही
अब न एक विष बाण चलाओ
छूने की इच्छा है मेरी
नील गगन थोड़ा झुक जाओ
नूतन तड़प जगी इच्छा में
नई तरह से मत तड़पाओ