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छू जाये दिल को ऐसा कोई फ़न अभी कहाँ / ‘अना’ क़ासमी
Kavita Kosh से
छू जाये दिल को ऐसा कोई फ़न अभी कहाँ
कोशिश है शायरी की ये सब शायरी कहाँ
यूँ भी हुआ कि रेत को सागर बना दिया
ऐसा नहीं तो जाओ अभी तिशनगी कहाँ
ये और बात दर्द ने शक्लें तराश लीं
जो नक्श बोलते हैं वो सूरत बनी कहाँ
माना हमारे जैसे हजारों हैं शहर में
तुम जैसी कोई चीज़ मगर दूसरी कहाँ
ये जो बरहना संत है पहचानिये हुज़ूर
ये गुल खिला गयी है तिरी दिल्लगी कहाँ
अब आपको तो उसके सिवा सूझता नहीं
किस शख़्स की ये बात है और आप भी कहाँ
ये क्या छिपा रहा है वो टोपी में देखिये
इस मयकदे के सामने ये मौलवी कहाँ
आँखें हैं या के तश्त में जलते हुए चराग़
करने चले हैं आप ये अब आरती कहाँ