छेड़ मंजूर है क्या आशिक-ए-दिल-गीर के साथ / 'निज़ाम' रामपुरी
छेड़ मंजूर है क्या आशिक-ए-दिल-गीर के साथ
ख़त भी आया कभी तो ग़ैर की तहरीर के साथ
गो के इकरार ग़लत था मगर इक थी तस्कीन
अब तो इंकार है कुछ और ही त़करीर के साथ
पेच क़िस्मत का हो तो क्या करे इस में कोई
दिल को वाबस्तगी है ज़ुल्फ-ए-गिरह-गीर के साथ
वो भी कहते हुए कुछ दूर तक आए पीछे
हम जो उस बज़्म से निकले भी तौ तौक़ीर के साथ
ये भी इक वस्ल की सूरत थी मगर रश्क-ए-नसीब
उस की तस्वीर कभी ग़ैर की तस्वीर के साथ
वादा-ए-सुब्ह पे अब किस को यकीं हो क़ासिद
आज तो जान गई नाला-ए-शब-गीर के साथ
कहो रंजिश का सबब कुछ नहीं मेरी ही सुनो
उज्र तो चाहिए करना मुझे तक़्सीर के साथ
आप देते हैं अज़ीयत ही शिकायत की एवज़
कुछ ज़बाँ से भी तो फरमाइए ताज़ीर के साथ
देखिए मिल ही गया आप से वो शोख़ ‘निज़ाम’
काम जो कुछ करे इंसान सौ तदबीर के साथ