छोटा कुम्हार बड़ा कुम्हार / देवनीत / रुस्तम सिंह
बचपन में
साथियों सा … साथियों संग
जाता था … खेतों में
वे जाते थे कुछ खाने — बेर, कच्चे चने
मैं जाता था कुछ देखने — हिरन, खरगोश
अकेला खड़ा
देखता रहता
ऊँची मेंड़ पर कुलाँचे भरते
हिरन
दिल करता … ईश्वर मुझे हिरन बना देता
मनमर्जी से … खाता-पीता, दौड़ता रहता
खेत से भाग सभी
बुधराम की भट्ठी पर आ बैठते
बुधराम चाक घुमाता
बर्तन बनाता रहता
हम इर्द-गिर्द बैठ जाते
बुधराम पूछता – बताओ क्या बनेगा ?
— दीया ! हम सभी इकट्ठे बोलते
वह अपनी उँगलियों के दबाव बदलता
बन जाता
कुछ और
हंस पड़ता बुधराम
जीत जाता बुधराम
हार जाते हम
फिर बुधराम बारी-बारी
हर एक के हिस्से का
बनाता एक बर्तन
मेरा-मेरा — करते रहते
ठण्डी काली मिट्टी
के पास बैठे
हम बच्चे
सोचता हूँ आज
अगर मैं
बुधराम जितना जानता होता
ईश्वर को
तो बन जाता
मैं हिरन ।
मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : रुस्तम सिंह