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छोटा साबित हो जाने का भय पालने वालों से / विमल राजस्थानी
Kavita Kosh से
राहों पर चलते नहीं शब्द को शक्ति मिली
अक्षर को उर का रूधिर पिलाया है मैंने
रूहों को दी है बेशुमार धड़कनें, गड़े
मुर्दो को भी झकझोर जिलाया है मैंने
साहित्य रचो, कूड़े-करकट का क्या होगा
जीवन की धड़कन बनो, साँस की गति-पथ दो
प्राणों की ऊष्मा भरो, गीत को गौरव दो
सच्चे कवि बनो, फेंक कृत्रिम चोंगा
वाणी में बसी न अगर प्यार की धड़कन तो
पुरअसर हं होगी, अमरत्व न पायेगी
सूरज-सा दमकेगी न छंद के क्षितिजों पर
टिमटिमा रहे दीपक की लौ बुझ जायेगी
जो तरूण न पुरखों को सम्मान दिया करते
वे बालारूण काले मेघों से ग्रसित है
इतिहास उन्हें ही देता है स्थान सदा
जो श्रद्धा से पुरखों के सम्मुख ‘नमित’ है