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छोटी-मोटी पोखरा, सुन्नर तोरे घाट हे / भोजपुरी

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छोटी-मोटी पोखरा, सुन्नर तोरे घाट हे,
हाथी के दाँत बनावे चारु घाट हे, व्याकुल कुंज बनवा.
हाँ रे, अब सिया हरि ले गइले सिरी बनवास हे, व्याकुल.।।१।।
लहलह पुरइन पाता हहराई, ताही बीचे चकवा करेले कविलास, हो व्याकुल.
हाँ रे, अब कुंज बनवें सिया हरि ले गइले बनवास हो, व्याकुल.।।२।।
सुनु भाई चकवा पहिले एक बात
हाँ रे, अब सिया हरि ले गइले बनवास हो, व्याकुल.
एही बाटे देखलो हे सिया के हरले जाले, व्याकुल कुंज बनवा।।३।।
चरिले सरवन दह उड़िले आकासे,
हाँ रे, नाहीं जानी सीता-पीता, पेटवा के चिन्ता हे, व्याकुल कुंज बनवाँ।
हाँ रे, अब सिया हरि ले गइले बनवास हो, व्याकुल कुंज बनवाँ।।४।।
हाँ रे, कोपेलें लछुमन कि धेनुख चढ़ाय के,
कि मारो सारे चकवा बोलेले अभिमान हे, व्याकुल.
कि अब सिया हरि ले गइले अब बनवास हो, व्याकुल कुँज बनवाँ।।५।।
चकई के मरले दान-पुन एक बात हे,
चकवा मरले दह होइहें सून, व्याकुल कुंज बनवाँ।।६।।
सुनु भाई चकवा, लगिहें सरापे,
हाँ रे, दिनकई ठोरा-ठोरी, रातवा बिछुड़ि जइहें जोड़ी, व्याकुल.
अब सिया, हरि के गइले, बनवासे, व्याकुल कुंज बनवाँ।।७।।
सुनु भइया बकेवा, पूछिले एक बात,
एही बाटे देखल सिया के हरले जाले, व्याकुल कुंज बनवाँ।
अब सिया हरि ले गइले बनवासे, व्याकुल कुंज बनवाँ।।८।।
चरिले सरवन दह, उड़िले आकासे,
नाहीं जानी सीता-पीता, पेटवे के चिन्ता, व्याकुल कुंज बनवाँ।।९।।
जाहू रे बकवा, लगिहें सरापे, मेहरी के जूठा करब अहार, व्याकुल.
अब सिया हरि ले गइले बनवासे, व्याकुल कुंज बनवाँ।।१0।।