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छोटी बहन / सरोज कुमार

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साल में, दो साल में
जब भी आती है उसकी छोटी बहन
विदेश से,
घर में
होली- दिवाली-ईद-क्रिसमस
सभी आ जाते हैं
उसकी आगवानी को!

दिवारे जो पीली हो चुकती हैं
झकाझक हो जाती हैं,
सोफ़े के कवर
बदल जाते है,
पर्दे टंग जाते हैं,
अलमारी के पीछे कि धूल झड जाती है,
बच्चों के दोस्तों को
मालूम पड जाता है
कि बुआ आ रही है!

छोटी बहन छोटी जरूर है उससे
पर डरता है वह अगर
दुनिया में किसी से,
तो एकमात्र उसी से!

उसकी पत्नी
ननद
उसकी शिकायतें करती हुई
विजयी भाव से ठुनकती है।
माँ की रौ में बच्चे भी
कह डालते है अपनी-अपनी!
छोटी बहन यों तो
ठीक-ठीक समझती है भाई को,
पर शिकायतों के सेशन में
वह भी
विक्रमादित्य की
चाची बन जाती है!

छोटी बहन
बरसों से विदेश में है
विदेश में विदेशियों जैसी रहती है,
पर यहाँ आकर
वह एकदम ऐसी हो जाती है!
नए परिचितों को
भरोसा ही नहीं होता
कि बहन जी
तीस सालों से
अमरीका में
बिजनिस करती हुई
पति और बच्चों के साथ रह रही हैं!

माँ और पिता रहे नहीं
उसका घर ही
छोटी बहन का मायका है,
भाभी उसे
सास का सम्मान देती है!
उसने कभी
डॉलर का रुआब नहीं झाड़ा
न बच्चों को अपनी अंगरेज़ी सुनाई!
वह इस तरह आती है
जैसे रतलाम या नागपुर से आई हो!

बस एक ऐब, इन दिनों
उसके साथ लगा
चला आता है!
वह नहीं चाहती
कि सबको इत्तला की जाए,
कि वह आई है!
कहती है,
बस, घर के लोगों से मिलने आती हूँ
दीन-दुनिया और लोगों की तो
वहाँ भी कमी नहीं!
पर घरू प्यास है
जो उसे खींच-खींच लाती है!

घर में उसे माँ से, पिता से
मिलने की अनुभूति होती है!
बचपन के दिन
उसे बातों में घेरे रहते हैं!
उसे क्या-क्या मिला
क्या नहीं मिला, का
बंता-बिगड़ता बहीखाता,
खुलता है, बंद होता है!
घर के इतिहास में घुसकर
वह ऐसे-ऐसे किसे-कहानियाँ
खोज निकालती है
कि भाभी संदेह से भर जाती है
कि शायद उससे
छिपाकर रखे गए थे!
उसकी कुछ पुरानी सहेलियाँ
जरूर आ जाती हैं मिलने-जुलने
जो प्रौढ़ हो चुकने के बावजूद
उसके साथ
अपने जमाने की खूब सैर करती है!

इस बार छोटी बहन
चार साल से नहीं आई!
दीवारें पुछ रही हैं
वे कब नई होंगी?
सोफ़े मुरझा रहे हैं
पर्दे ढीले हो गए हैं!
भाभी सोचती है
जरूर कोई बात हो गई है
भाई-बहन में!
वह सोचता है, अब शायद
मायका और शेष संसार
एकमएक हो गए हैं!
आदमी जब बड़ा होता जाता है
पैसों में या कद में
या खासकर उम्र में,
रिश्तों का वजन
घटता जाता है!
उसे पता ही नहीं चलता
कि बड़े होने की कितनी कीमत,
उससे चुपचाप वसूली जा रही है!